

नई दिल्ली, 3 मई 2025 — आज पूरी दुनिया में विश्व पत्रकारिता दिवस मनाया जा रहा है, जो न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि उन पत्रकारों के साहस और संघर्ष को भी सलाम करता है जो सच को सामने लाने के लिए हर खतरा उठाते हैं।
यूनेस्को ने वर्ष 1993 में इस दिन को घोषित किया था, ताकि स्वतंत्र पत्रकारिता की भूमिका को वैश्विक स्तर पर मान्यता दी जा सके। इस वर्ष की थीम है:
“Journalism in the Face of the Environmental Crisis”
जो दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याओं के बीच पत्रकार किस तरह से जनता को जागरूक कर रहे हैं और शक्तिशाली संस्थानों से सवाल पूछ रहे हैं।
,,,,,,,,पत्रकारों पर बढ़ते हमले चिंता का विषय,,,,,,,,
हाल के वर्षों में पत्रकारों पर हमलों की घटनाओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (RSF) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में दुनिया भर में 60 से अधिक पत्रकारों की हत्या हुई और सैकड़ों को डराने-धमकाने, कैद करने या सेंसरशिप का सामना करना पड़ा।
भारत में भी कई राज्यों में पत्रकारों को रिपोर्टिंग के दौरान पुलिसिया दमन, राजनीतिक दबाव और ट्रोलिंग जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मणिपुर जैसे राज्यों में स्वतंत्र पत्रकारिता की स्थिति चिंता जनक बनी हुई है।
,,,,,,,,,,,डिजिटल मीडिया और फेक न्यूज़ की चुनौती,,,,,,,,,
वर्तमान समय में डिजिटल मीडिया ने पत्रकारिता को नई ऊँचाइयाँ दी हैं, लेकिन साथ ही फेक न्यूज़ और गलत सूचना का खतरा भी बढ़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि पत्रकारों को अब तथ्यों की जांच (fact-checking) और डिजिटल सुरक्षा में अधिक दक्ष होने की आवश्यकता है।
,,,,,,,,,,,,,कार्यक्रम और श्रद्धांजलि,,,,,,,,,,,,
दिल्ली, मुंबई, भोपाल, लखनऊ, छत्तीसगढ़ समेत देश के कई शहरों में मीडिया संस्थानों और पत्रकार संगठनों द्वारा संगोष्ठियों और जनचेतना कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। अनेक स्थानों पर मारे गए पत्रकारों को श्रद्धांजलि दी गई। सोशल मीडिया पर भी #WorldPressFreedomDay ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग अपनी बात रख रहे हैं और पत्रकारों को धन्यवाद दे रहे हैं।
,,,,,,,,,,,जनता का भरोसा ही असली ताक़त,,,,,,,,,,,
वरिष्ठ पत्रकारों और मीडिया शिक्षकों का मानना है कि पत्रकारिता का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब जनता मीडिया पर भरोसा बनाए रखेगी और सत्ता में बैठे लोग आलोचना को दुश्मनी नहीं समझेंगे।
जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था: “स्वतंत्र प्रेस देश की आत्मा होती है।” — इस कथन को आज के संदर्भ में और भी गहराई से महसूस किया जा सकता है।