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देहदान: मृत्यु के बाद भी जीवन की विरासत — कोरबा की एक मिसाल

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सुखनंदन कश्यप voice36.com

 

कोरबा, छत्तीसगढ़ — मृत्यु को जहां आमतौर पर अंत समझा जाता है, वहीं कोरबा जिले की एक घटना ने इसे एक नई शुरुआत का प्रतीक बना दिया। चैनपुर बसाहट के निवासी सुजान सिंह की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी शकुंतला देवी ने एक ऐसा निर्णय लिया जिसने समाज को इंसानियत और विज्ञान के लिए नई दिशा दिखाई — उन्होंने अपने पति का देहदान कर दिया।

 

सुजान सिंह ने अपने जीवनकाल में ही देहदान का संकल्प लिया था। उनके दत्तक पुत्र बहसराम के अनुसार, यह उनका दृढ़ निश्चय था कि उनके शरीर का उपयोग मेडिकल छात्रों की शिक्षा में हो। जब उनकी मृत्यु हुई, तो परिवार ने भावनाओं को किनारे रखकर उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए शव को मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया।

 

विज्ञान और मानवता का संगम

 

मेडिकल कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ. कमल किशोर सहारे ने बताया कि यह शव मेडिकल छात्रों के लिए शरीर रचना विज्ञान की पढ़ाई में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 55 वर्ष से कम आयु के स्वस्थ व्यक्तियों के अंगों का प्रत्यारोपण जरूरतमंद रोगियों में किया जा सकता है, जिससे कई जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं।

 

जन जागरूकता की सफलता

 

यह प्रेरणादायक घटना भारत विकास परिषद और मेडिकल कॉलेज द्वारा चलाए जा रहे देहदान-अंगदान जनजागरूकता अभियान की एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। परिषद की नई कार्यकारिणी समाज में फैली भ्रांतियों को दूर कर नेत्रदान व देहदान को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। मुनीर ट्रस्ट, जिससे सुजान सिंह जुड़े थे, ने भी इस निर्णय में मार्गदर्शन प्रदान किया।

 

एक अनुकरणीय उदाहरण

 

जहां मृत्यु के बाद अक्सर केवल शोक रह जाता है, वहीं शकुंतला देवी ने अपने पति की इच्छा का पालन कर समाज को एक सशक्त संदेश दिया — “मृत्यु अंत नहीं, किसी और के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है।”

 

यह घटना न सिर्फ विज्ञान और चिकित्सा शिक्षा की दिशा में एक सार्थक योगदान है, बल्कि समाज को यह भी दिखाती है कि जागरूकता और इच्छाशक्ति से हम मृत्यु को भी मानवता की सेवा का माध्यम बना सकते हैं।

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