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ग्राम तुमान में गूंजे राष्ट्रभक्ति के गीत, हुआ गुरु पूजन

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सुखनंदन कश्यप,voice36.com

कोरबा, करतला- गुरु पूर्णिमा का आयोजन ग्राम तुमान में किया गया सबसे पहले माँ भारती श्री गुरजी परम पुज्य हेडगेवार जी के तैल्य चित्र पर पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया सुभाशिष अमृत वचन गीत के पश्चात् वक्तव्य हुआ उसके बाद फिर प्रार्थना फिर गुरु पूजन का कार्य किया गया इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में जिला बौद्धिक प्रमुख ईश्वर श्रीवास जी कार्यवाह प्रेम पटेल जी खंड कार्यवाह मुख्य शिक्षक रूपेंद्र चौहान गीत लिया फागु श्रीवास तुमान उप खंड के पालक विकास जी ग्राम पंचायत के सरपंच प्रतिनिधि कमलेश कंवर जी जिला पंचायत प्रतिनिधि कमलेश अंनत जी अजय कंवर जी एवं गड़मान्य नागरिक गड़ उपस्थिति रहे इस कार्यक्रम में ईश्वर श्रीवास जी ने कहा अपने समाज में हजारों सालों से, व्यास भगवान से लेकर आज तक, श्रेष्ठ गुरु परम्परा चलती आयी है। व्यक्तिगत रीति से करोड़ों लोग अपने-अपने गुरु को चुनते हैं, श्रद्धा से, भक्ति से वंदना करते हैं, अनेक अच्छे संस्कारों को पाते हैं। इसी कारण अनेक आक्रमणों के बाद भी अपना समाज, देश, राष्ट्र आज भी जीवित है। समाज जीवन में एकात्मता की, एक रस जीवन की कमी है। राष्ट्रीय भावना की कमी, त्याग भावना की कमी के कारण भ्रष्टाचार, विषमय, संकुचित भावनाओं से, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, शोक रहित (चारित्र्य दोष) आदि दिखते हैं।

इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने गुरु स्थान पर भगवाध्वज को स्थापित किया है। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है। अपने राष्ट्र जीवन के, मानव जीवन के इतिहास का साक्षी यह ध्वज है। यह शाश्वत है, अनंत है, चिरंतन है।

व्यक्ति पूजा नहीं, तत्व पूजा

संघ तत्व पूजा करता है, व्यक्ति पूजा नहीं। व्यक्ति शाश्वत नहीं, समाज शाश्वत है। अपने समाज में अनेक विभूतियां हुई हैं, आज भी अनेक विद्यमान हैं। उन सारी महान विभूतियों के चरणों में शत्-शत् प्रणाम, परन्तु अपने राष्ट्रीय समाज को, संपूर्ण समाज को, संपूर्ण हिन्दू समाज को राष्ट्रीयता के आधार पर, मातृभूमि के आधार पर संगठित करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है। इस नाते किसी व्यक्ति को गुरुस्थान पर न रखते हुए भगवाध्वज को ही हमने गुरु माना हैं

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