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पुलिस की पावती में ओवरराइटिंग से सवाल, क्या हो रही है कार्रवाई की पारदर्शिता?

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कोरबा। जिले में पुलिसिंग को बेहतर करने और सामुदायिक तथा मित्रवत बनाने की तमाम कोशिशें और मिलती सफलताओं के बीच एक घटनाक्रम ने पुलिस के कुछ अधिकारियों की नीति और नीयत पर सवाल उठा दिए हैं। अपराध को संज्ञेय या असंज्ञेय मानकर संबंधित के विरुद्ध जुर्म दर्ज करना पुलिस के कानूनी अधिकार क्षेत्र में है लेकिन जब कोई घटना घटित ना हुई हो या उस घटना के घटित होने का प्रमाण दूर-दूर तक समक्ष में ना हो, लेकिन फिर भी गंभीर धाराओं में प्रकरण दर्ज किया जाए तो सामाजिक तौर पर सवाल उठना लाजिमी है। कुछ ऐसे ही सवालों के बीच बांकीमोगरा थाना में पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर दर्ज की गई एक FIR कहानी कर गई है। घटना को घटित होने के दौरान देखने वालों से लेकर सोशल मीडिया में वायरल वीडियो के माध्यम से इस पूरे घटनाक्रम को समझने के बाद और फिर एक के बाद एक होती शिकायत व FIR ने इस पूरे मामले को पेचीदा बनाया है। साथ-साथ यह भी कहीं न कहीं दिखाई देता है कि पुलिस दबाव में आकर उस घटना के लिए भी अपराध दर्ज कर लेने बाध्य हो जाती है जो अपराध संभवत: घटित हुआ ही नहीं है। हालांकि, पुलिस की विवेचना जारी है।

 

 

बांकीमोगरा की भाजपा नेत्री और आदिवासी किसान बलवान सिंह कंवर,निवासी ग्राम बरेड़ीमुड़ा निवासी ( छेड़छाड़ के आरोप में बलवंत सिंह) के बीच घटित घटनाक्रम 7 मई 2025 को शाम 4:30 बजे से 6 बजे के मध्य का है। रावणभाठा मार्ग से कार गुजरने के दौरान बैल व किसान को साइड करने की बात को लेकर विवाद शुरू होता है और फिर पिटाई, उठाकर थाना लाने के बाद थाना परिसर में भवन के सामने ही तेज आवाज में गुस्सा कर, अपशब्दों के साथ किसान को पीटते वक्त कहीं भी छेड़छाड़ शब्द का उपयोग नहीं हुआ जबकि साइड देने की बात पर गाली देने और औरत जात को कमजोर समझने का भरपूर गुस्सा उतारा जा रहा है। न तो वे थाना के भीतर जाती दिखतीं हैं और न किसी पुलिस कर्मी को मौके पर बुलाकर बलवान को हिरासत में लेने की कोशिश होती है। सोशल मीडिया में मुद्दा उछलने, रामपुर के कांग्रेस विधायक फूलसिंह राठिया के पत्र के बाद पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ तिवारी इसे गंभीरता से लेते हैं। उनके सख्त रवैये और निर्देश के बाद सीएसपी की बांकीमोंगरा थाना में मौजूदगी में 8 मई को बलवान सिंह की रिपोर्ट पर उसी रात नेत्री व साथियों के विरुद्ध FIR होने तक भी नेत्री के द्वारा कोई शिकायत नहीं की जाती।

फिर आदिवासी समाज एक्टिव होता है और दर्ज धाराओं में एक्ट्रोसिटी एक्ट जोड़ने तथा नेत्री की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ने पर एकाएक नेत्री द्वारा 7 मई को शाम 5 बजे गजरा के रास्ते में अकेला पा कर बलवंत द्वारा छेड़छाड़, हाथ पकड़कर खींचने, गाली देने, जबरदस्ती करने, फिर मदद के लिए चिल्लाने पर लोगों के वहां आने और बलवंत को थाना ला कर घटना की जानकारी देने सम्बन्धी लिखित शिकायत 9 मई को की जाती है। इसके बाद थाना में खेल हुआ और शिकायत के आधार पर बलवंत के विरुद्ध छेड़छाड़ और अन्य धाराओं में जुर्म दर्ज कर लिया जाता है। आदिवासी किसान पर FIR के बाद आदिवासी समाज में आक्रोश बढ़ रहा है,सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं।

 

 

👉इन सवालों ने पूरी कार्रवाई को घेरा

अगर नेत्री के साथ वास्तव में इस तरह की घटना हुई है तो निःसन्देह बलवंत सजा का हकदार है किंतु जिस तरह का व्यूह रचा गया उसमें पुलिस घिर रही है।

 

जब 7 मई को पीड़िता नेत्री ने कथित आरोपी को थाना तक ला कर पुलिस को कथित छेड़छाड़ के बारे में बताया तो उसी वक्त हिरासत में क्यों नहीं लिया गया? उस समय रात भी नहीं हुई थी कि आरोपी को थाना के लॉकअप में रखने की दिक्कत होती।

जब थाना भवन के सामने ही परिसर में शोर शराबा कर कानून हाथ में लिया जा रहा था तो दिवस अधिकारी(ड्यूटी ऑफिसर), मुंशी, आरक्षक, मददगार वहां माजरा जानने क्यों नहीं पहुंचे, यदि बलवान या नेत्री के साथ कुछ अनहोनी हो जाती तो क्या करते?

नेत्री द्वारा 9 जून 2025 को दी गई छेड़छाड़ की लिखित शिकायत में पुलिस द्वारा प्रदत्त वापसी पावती में थाना का सील 9 जून 2025 का लगा है तो आवेदन की तारीख में पेन से ओव्हर राइटिंग कर 7 जून 2025 किसने किया? क्या थाना में जमा आवेदन में भी यही ओव्हर राइटिंग हुई है? यदि आवेदन 7 जून को पीड़िता ने दिया तो उसकी पावती दो दिन बाद क्यों दी गई, संवेदनशील मामले की FIR 7 जून को ही क्यों नहीं लिखी गई,8 जून का भी पूरा दिन-रात निकल गया।

क्या जिले में पुलिसिंग बेहद दबाव में हो रही है जो सच औऱ बनावट का फर्क नहीं समझ पा रही है? किसी निर्दोष को बेवजह का दंड न मिले,यह न्याय प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता है और पुलिस इसकी पहली सीढ़ी है

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